नागा साधु: इतिहास, जीवन और तपस्या के रहस्य | Naga Sadhu in Hindi

By

नागा साधु कौन होते हैं?

आज हम आपको नागा साधुओं के बारे में बताएंगे और आप उनसे क्या सीख सकते हैं। हमारे देश में नागा साधुओं के बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है, और इस विषय पर कई गलतफहमियाँ हैं। यह भारत देश की बड़ी विडंबना है कि आज की पीढ़ी नागा साधुओं के इतिहास के बारे में बहुत कम जानती है, जबकि इस विषय पर दुनिया के बड़े-बड़े विद्वान हैरान और आश्चर्यचकित होते हैं। वे कहते हैं कि जब हार्वर्ड जैसे विश्वविद्यालय भी नागा साधुओं पर अध्ययन कर रहे हैं, तब भारत के ज्यादातर लोगों को इनके बारे में कुछ पता नहीं है।

Also Read: मेहनत और सब्र का फल 

नागा साधु कैसे बनते हैं?

नागा साधु असल में एक मानसिक स्थिति है, जो कुछ त्यागने से शुरू होती है और यह त्याग सबसे पहले शरीर का होता है। इसमें नागा साधु बनने वाला व्यक्ति पहले अपने आप का अंतिम संस्कार करता है, फिर स्वयं का पिंडदान करता है। यह सब नागा साधु बनने की प्रक्रिया का हिस्सा है। यह प्रक्रिया नागा साधु की मानसिक स्थिति को दर्शाती है, जिसमें व्यक्ति अपने हाथों से स्वयं का अंतिम संस्कार कर पिंडदान करता है और आत्म-त्याग की ओर बढ़ता है।

नागा साधु भयंकर सर्दी में भी निर्वस्त्र रहते हैं, और उन पर ठंड का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

नागा साधु अपनी सारी संपत्ति, परिवार, रिश्तेदार, और यहां तक कि भोजन तक का त्याग कर देते हैं। यह त्याग ही उनकी सबसे बड़ी तपस्या है। नागा साधु दिन में सिर्फ सात लोगों से अपने भोजन के लिए भिक्षा मांग सकते हैं। नागा साधुओं का नियम है कि वे एक दिन में सिर्फ सात घरों या सात व्यक्तियों से ही भिक्षा मांग सकते हैं। और अगर उन सात घरों या सात लोगों से भोजन नहीं मिलता है, तो वे आठवें घर से भोजन मांगने नहीं जाते, बल्कि उस दिन भोजन का त्याग करके अपनी तपस्या पूरी करते हैं।

Also Read: Hunger of Poor People Story in Hindi

नागा साधु कुंभ मेले में कहां से आते हैं और फिर कहां जाते हैं?

नागा साधु या संन्यासी, वे लोग होते हैं जो पहाड़ों में रहकर तपस्या करते हैं। नागा साधु को योद्धा और संन्यासी भी कहा जाता है, क्योंकि ये योद्धा होते हैं, और इनका इतिहास गुरु आदि शंकराचार्य से जुड़ा हुआ है। जब गुरु आदि शंकराचार्य ने भारत के चार अलग-अलग दिशाओं में चार मठों की स्थापना की, तब आदि शंकराचार्य ने इन मठों की रक्षा करने के लिए नागा साधुओं की एक टोली बनाई। इन नागा साधुओं को शास्त्रों का भी ज्ञान था, क्योंकि उस समय सनातन धर्म की रक्षा केवल तपस्या से नहीं हो सकती थी, बल्कि शास्त्रों का भी उठान आवश्यक था। इसलिए नागा साधु आए, जो शास्त्रों के साथ-साथ शास्त्रों का पालन करना भी जानते थे।